Budha Pushkar Feeder Construction, Ajmer

BUDHA PUSHKAR FEEDER

परियोजना का नाम: बूढ़ा पुष्कर फीडर निर्माण, अजमेर 

(बजट घोषणा 2015-16 माननीया मुख्यमंत्री महोदया का बजट सत्र में उद्बोधन)

वित्तीय स्वीकृति: 906.00 लाख रूपये

भौतिक प्रगति:  पेनोरमा का लोकार्पण दिनांक 14-07-2016 को माननीया मुख्यमंत्री महोदया द्वारा किया जाकर आमजन के दर्शनार्थ चालू है।

तीर्थ गुरु पुष्कर राज की पौराणिक महिमा (बूढ़ा पुष्कर)

पुष्कर के विषय में अधिक लिखने के पहले यह बता देना आवष्यक है कि पुष्कर एक नहीं तीन हैं ज्येष्ठ पुष्कर अथवा ब्रह्म पुष्कर, मध्य पुष्कर अथवा विष्णु पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर अथवा रुद्र पुष्कर जिसे बुड्ढा पुष्कर (बूढ़ा पुष्कर) भी कहते हैं। बूढ़ा पुष्कर जयपुर बाईपास पर पुष्कर कस्बे से लगभग 4 किलोमीटर दूर कानस ग्राम में स्थित हैं। रुद्र पुष्कर महापुष्कर कहलाया और फिर धीरे-धीरे बड़ा और बुड्ढा पुष्कर (बूढ़ा पुष्कर) कहलाने लगा। यह स्थान अति शांत, एकान्त, समीप में पहाड़ी क्षेत्र, साथ ही बालू रेत के टीलों के कारण मनहरण प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त हैं। ब्रह्म पुष्कर में मुर्दों की भस्म के ढेर के ढेर निरंतर पटके जाने से ऊपरी मिट्टी का आस्तरण खूब बिछ गया है। यहां पर 100 वर्ष से बनी हुई कोई इमारत नहीं हैं। सबसे प्राचीन एक टीले पर बैरागी खाकी साधू इंद्रदास द्वारा निर्मित श्रीवेंकटेषजी का मन्दिर है जो विक्रम सम्वत् 1817 के आसपास बना था और अब टूट-फूट गया है। अब वह बालाजी का मन्दिर कहलाता हैं। यहां पर बाबू रामजीवन जी भार्गव दीवान शाहपुरा राजमाता का वि.सं. 1855 में बनाया हुआ रघुनाथ जी का मन्दिर हैं। विक्रम सम्वत् 1856 में दीवान साहब की धर्म पत्नी द्वारा यहां पर रामघाट भी बनवाया गया था। यहां पर एक कूप ब्रह्मचारी रामचंद्र ने बनवाया था। यहां पर कोई पंडे नहीं हैं। समीप में ही करीब 60 घरों का रावतमेरों की बस्ती का ग्राम है जो ‘‘कानस’’ कहलाता है। यहां पर एक छोटा-सा मन्दिर दुग्धाहारी बंगाली बाबा का भी बनवाया हुआ है। यहां पर पृथ्वीराज के पिता सोमेष्वरदेव का (1169-1178) बनवाया हुआ वैद्यनाथ का मन्दिर है। जिसका वर्णन ‘पृथ्वीराज-विजय’ के अष्टम सर्ग में मिलता है। यथा-यूथनाथमिवैतेषां मध्ये भव गदागदम्।प्रासादं वैद्यनाथस्य प्रजाक्षेमंकरो व्यधात्।।दत्ते हरिहयेनेव शुद्धरीतिमये हरौ।प्रतिष्ठां लंभितस्तत्र शुद्धरीतिमयः पिता।।एकस्थाने प्रतिष्ठाप्य ब्रह्मविष्णु महेष्वरान्।त्रिपूरुषमिव श्राद्धं धन्यो निर्मितवान्पितुः।।पù पुराण के सृष्टि खण्ड अनुसार एक समय देवेष्वर ब्रह्माजी परमेष्वर का ध्यान कर रहे थे। ध्यान करते-करते उनके मन में विचार उठा कि ‘‘मैं किस प्रकार यज्ञ करूं ? भूतल पर कहां और किस प्रकार मुझै यज्ञ करना चाहिए ? इस प्रकार विचार करते प्रजापति ब्रह्मा के मन में यह विचार आया कि अब मैं पृथ्वी पर चलूं। यह सोचकर वे अपनी उत्पत्ति के प्राचीन स्थान पर आये जिसे वेदपाठी ऋषि भगवान श्री विष्णु की नाभि से प्रकट हुए कमल को ही पुष्कर-तीर्थ बतलाते हैं। लोककर्ता ब्रह्माजी ने इस पावन भूमि पर यज्ञ निमित्त वेदी बनाई तथा वहां तीन पुष्करों की कल्पना की। प्रथम ज्येष्ठ पुष्कर जिसके देवता साक्षात् ब्रह्माजी, दूसरा मध्यम पुष्कर जिसके देवता श्री विष्णु, तीसरा कनिष्ठ पुष्कर (बूढ़ा पुष्कर) जिसके देवता भगवान रूद्र है। यह त्रिपुष्कर-तीर्थ सब तीर्थों में प्राचीन व श्रेष्ठ माना गया है। ब्रह्मलोक में जाने की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को तीनों पुष्करों में अनुलोभ क्रम अर्थात् क्रमषः ज्येष्ठ, मध्यम एवं कनिष्ठ पुष्कर में तथा विलोम क्रम से अर्थात् कनिष्ठ, मध्यम और ज्येष्ठ पुष्कर सरोवर में स्नान करके उनकी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। इसी प्रकार त्रिपुष्कर में पितृकार्य किया जाता है उसका अक्षय फल होता है, पितर और पितामह सन्तुष्ट होकर उन्हें उत्तम जीविका की प्राप्ति के लिए आषीर्वाद देते हैं। यहां तर्पण करने से पितरों की तृप्ति होती है और पिण्डदान करने से उन्हें स्वर्ग मिलता है। भगवान श्री रामचन्द्रजी ने इस तीर्थ में आकर मार्कण्डेय ऋषि के कथनानुसार अपने पिता दषरथजी के लिए पिण्डदान और श्राद्ध किया था। इसी प्रकार जो मनुष्य कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुष्कर सरोवर मंे स्नान कर ज्येष्ठ पुष्कर में गौ-दान, मध्यम पुष्कर में भूमिदान व कनिष्ठ पुष्कर (बूढ़ा पुष्कर) में स्वर्णदान करता है तथा जो वहां टूटे-फूटे तीर्थों का जीर्णोद्धार करते हैं, वे ब्रह्मलोक में जाकर सुखी व आनन्दित होते है ऐसा पुराण-षास्त्रों में कहा गया है।इससे जुड़ी एक पुरानी कहानी यह भी है कि जब मुगल शासक औरंगजेब मंदिरों और मठों को तोड़ता हुआ इस स्थान पर आया और इस जल में स्नान कर जब उसने पानी में अपना चेहरा देखा तो उसे अपना बुढ़ापा नजर आया। यहीं वजह है कि उसके बाद इसे बुढ़ा पुष्कर कहा जाने लगा। आज भी इस स्थान पर स्नान कर दान पुण्य करने का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां आकर सच्चे मन से स्नान कर पूजा अर्चना करता है उसकों सभी दुःखों से छुटकारा मिल जाता है और उसके घर परिवार में धन वैभव की बढ़ोतरी होती है। यहां पर भगवान शंकर, श्री राम, लक्ष्मण और सीता के साथ-साथ रामानुज का प्राचीन मंदिर भी स्थित है जो बहुत ही दर्षनीय है।कहा जाता है कि मंडोर के राजा नाहरराव पड़िहार 13 वीं सदी के जंगली सूअर का लक्ष्य बांध अपने साथियों से बिछड़कर इस क्षेत्र से प्रविष्ट हो गये। सूअर अदृष्य हो गया, किंतु राजा को प्यास लगी। कुछ देर भटकने के पश्चात् राजा को गाय के खुर के समान गड्डा नजर आया तो कि स्वच्छ जल से परिपूर्ण था। राजा ने अपने दोनों हाथों की अंजुली बना कर ज्योंही गड्डे से जल निकाला उन्हें यह देखकर आष्चर्य चकित रह जाना पड़ा कि उनके दोनों हाथों से कुष्ठ जैसे भयानक रोग के लक्षण समाप्त हो गये। तत्पष्चात् जल को को उन्होंने अपने सारे शरीर पर मला जिससे सम्पूर्ण शरीर के कुष्ठ के लक्षण समाप्त हो गये व शरीर कांतिमय हो गया। फलतः प्रभावित होकर उन्होंने उस गड्डे को सरोवर का रूप देने का संकल्प किया और लौट गये। कुछ समय पष्चात् राजा ने अपने संकल्प को पूरा किया।  श्री पुष्कर की महिमा तो यह है कि जैसे भगवान मधुसूदन (विष्णु) सब देवताओं के आदि है वैसे ही श्री पुष्कर सब तीर्थों का आदि है इसी कारण यह तीर्थ गुरु की महान् पदवी से सुषोभित है। पुष्कर अनादि सिद्ध क्षेत्र है। यह नित्य तीर्थ है। भारत के पंच सरोवरों में प्रमुख सरोवर है भारत के पंच तीर्थों में प्रमुख तीर्थ है। नव आरण्यों में प्रसिद्ध पुष्करारण्य है। पृथ्वी के दो नेत्रों में से एक नेत्र है यहां सृष्टि कर्ता ब्रहमा जी स्वयं गायत्री के साथ निवास करते है जिनके पूजा दर्षन से सुख सौभाग्य मिलता है। श्री पुष्कर में भगवान विष्णु का स्वयं प्रगट श्री विग्रह स्थित है। भगवान के विभिन्न अवतारों को निवास स्थान है, भगवान कृष्ण व हिंस डिम्भक की संग्राम भूमि है, नंदनी प्रभंजन की मोक्षभूमि, नागकुल व वेदमाता गायत्री की जन्म भूमि षिव व भगवती के दिव्य क्षेत्र व शक्ती पीठ, ऋषि-महर्षियों की तपोभूमि जहां बैठकर भगवान व्यास ने वेदों का विभाग व पुराणों की रचना की है। यहीं सरस्वती प्राणियों के पाप दूर करने के लिये ब्रहम लोक से आकर ठहरी है। यही से सरस्वती सुप्रभा, कनका, चन्द्रा, नन्दा व प्राची पंच स्रोता बनकर निकली है। ज्येष्ठ, मध्य, कनिष्ठ तीन यहां के पवित्र एवं निर्मल सरोवर है जिनके दर्षन मात्र से ही मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। नाग पर्वत की तलहटी पर नाग तीर्थ (पंचकुण्ड) में स्नान करने से मनुष्य की सांप काटने से मृत्यु नही होती है। यही पर पाण्डवों के वनवास काल का तीर्थ पंचकुण्ड है। पितरों का प्रिय गया-कूप नाम से यहां प्रसिद्ध तीर्थ है जहां भगवान राम ने अपने पिता का श्राद्ध किया था। ‘‘पुष्करे क्षयं श्राद्ध तत्पष्चैव महाफलम्’’ श्री पुष्कर में किये गये श्राद्ध का अक्षय फल प्राप्त होता है। यहां कपिला नाम का वापी है जहां कार्तिक शुक्ला चतुर्दषी को स्नान पर मनुष्य सुन्दर देह पाता है। वामदेव आश्रम के पास सुप्रभा नाम का कूप है जहां स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। यज्ञ पर्वत की तीर पर अगस्त्यमुनि का आश्रम है जहां स्नान व पूवे दान का विषेष महत्व है। नाग पर्वत पर ही ऋषि यमदग्नि का आश्रम व राजा भर्तृहरी की मनोरम गुफा भी स्थित है। पाप नाषक प्राची सरस्वती के तीर पर भगवान व्यास, दधीचि, कण्व, च्यवन आदि महर्षियों के आश्रम है। मंकणक ऋषि के आश्रम पर भगवान षिव सदा निवास करते है। मनुष्यों के सर्व मनोरथ पूर्ण करने वाला मृकंड ऋषि का आश्रम है यहां प्रेत तीर्थ है जहां स्नान करने वाला प्रेत योनि नहीं पाता है। यहां पुत्रदा नाम की वापि है जहां स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होती है। सर्व तीर्थ युक्त यज्ञ पर्वत (नाग-पर्वत) है जहां महर्षि विष्वामित्र का श्री पुष्कर में तप करने, मेनका द्वारा तप भंग करने व महर्षि के साथ 10 वर्ष तक रहने का वर्णन है। महर्षि वृहस्पति ने श्री पुष्कर में तपस्या की एवं वर प्राप्त कर देव गुरु बने। मां भगवती के 51 शक्ति पीठों में से एक ‘‘पुष्कर पुरुहुतेति’’ पुष्कर सरोवर के पष्चिम की ओर पुरुहुता पर्वत पर शक्ति पीठ स्थित है। पुष्कर तीर्थ सरोवर में कार्तिक शुक्ल मास की एकादषी से पूर्णिमा विषेष करके पदम्क योग (विषाखा का सूर्य व कृतिका का चंद्र) आने पर स्नान, दान, श्राद्ध करने को कोटि गुणा पुण्य फल प्राप्त होता है। यह तीर्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करने वाला है इसी कारण सत्ययुग के इस आदि तीर्थ की महानता को सभी देव-देवी, ऋषि, महर्षियों ने तीर्थ गुरु के रूप में स्वीकार किया है। इस प्रकार का वर्णन वेदों से लेकर पुराणों आदि में वर्णित है।जन्म प्रभाति मद पापस्त्रियों या पुरुषस्य वा। पुष्करे स्नान मात्रस्य सर्व-मेव प्रणष्यति।।