Gogaji Panorama, Gogamedi, Hanumangarh

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परियोजना का नाम: गोगाजी पेनोरमा, गोगामेड़ी

183  लाख रूपये से कार्य पूर्ण किया जा चुका है।

पेनोरमा आमजन के दर्शनार्थ चालू है।

 

 

लोकपूज्य देवता गोगाजी के जीवन का संक्षिप्त परिचय

नाम:- लोकपूज्य देवता गोगाजी (जाहरवीर गोगाजी) को लोग गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर, जाहर पीर व गोगा पीर के नामों से भी पुकारते है।

पिता:- वीर गोगाजी के पिता का नाम जेवरसिंह (जैबर व जीवराज) था, जो कि राजस्थान के ददरेवा (चुरू) के चौहान वंष के राजपूत शासक थे।

माता:- वीर गोगाजी की माता का नाम बाछल देवी था। 

जन्म दिनांक:- वीर गोगाजी का जन्म भादो सुदी नवमी विक्रम संवत् 1003 को हुआ था।

जन्म स्थान:- वीर गोगाजी का जन्म राजस्थान में चुरू जिले के राजगढ़ रेल्वे जंक्षन से लगभग 8 मील (13 कि.मी.) पष्चिम रिणी (आधुनिक नाम तारा नगर) जाने वाले बस मार्ग पर स्थित दत्तखेड़ा, ददरेवा (दद्दरपुर, दारिद्रेरक) में हुआ था। 

विवाह:- वीर गोगाजी के वैवाहिक जीवन के संबंध में लोक-कथाओं में उनकी दो पत्नियों के नाम राणी केलमदे व राणी सिरियल का उल्लेख किया है। राणी केलमदे को पाबूजी के भाई बूड़ोजी की पुत्री बताया गया है। राणी सिरियल तंदुली नगरी के राजा सिंघा की पुत्री थी।

निर्वाण:- वीर गोगाजी का निर्वाण महमूद गजनवी के साथ हुए युद्ध में वि.सं. 1081 (सन् 1024 ई.) में हुआ। वीर गोगाजी ने वृद्धावस्था में अपने भाई-बन्धुओं, पुत्र-पौत्रों सहित असाधारण पराक्रम के साथ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। जिनकी समाधि भादरा से 15 कि.मी. उत्तर-पष्चिम में गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ में है, इस समाधि स्थल को धुरमेड़ी भी कहते हैं। यहां के पुजारी चायल मुसलमान हैं जो गोगाजी चौहान के ही वंषज हैं।  

चारित्रिक विषेषताएं:- महापुरुष गोगाजी जाहरवीर हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी संप्रदायों के लोकप्रिय देवता है, यह पीर नाम के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। यह गुरु गोरखनाथ जी के प्रमूख षिष्यों में से एक थे। इन्होंने तंत्र विद्या की षिक्षा गुरु गोरखनाथ जी से प्राप्त की थी। चौहान वंष में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद वीर गोगाजी ही अधिक ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था। लोकपूज्य देवता वीर गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग इन्हें गोगजी चौहान गुर्जर, गुग्गा, जाहिर पीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। 

मरुस्थली के सिर पर ऊंची, सीधी और अगम चट्टान की चोटी पर गोगागढ़ नामक एक किला था। दुर्गम गिरि पर विराजमान गरुड़ की भांति वह छोटा-सा दुर्ग उस समय बहुत महत्व रखता था। बिना इस दुर्ग की दृष्टि में पड़े कोई इस मरुस्थली में प्रविष्ट नहीं हो सकता था। जहां के गढ़पति चौहान कुल षिरोमणि वीर राणा गोगा थे। लोक कथाओं के महानायक राणा गोगाजी चौहान को ‘नाग देवता’, वीर योद्धा व सिद्ध पुरुष के रूप में अगाध श्रद्धा एवं विष्वास के साथ पूजा जाता हैं। प्रमुख पांच लोकपूज्य देवताओं गोगाजी, रामदेवजी, पाबूजी, हरभूजी एवं मेहाजी के सम्बन्ध में निम्न पंक्तियां लोक साहित्य में अंकित है:- 

‘पाबू हरभू राम दे मांगलिया मेहा।

पांचू वीर पधारज्यो गोगा दे जेहा।।’

चौहान राजा अन्ना जी के पुत्र घंघ ने घांघू नामक ठिकाना बसाया। घंघ की पहली पत्नी से पुत्र हर्ष व पुत्री जीण का जन्म हुआ। हर्षनाथ भेरू व जीण माता सीकर जिले में स्थित है, जो लोक आस्था के केन्द्र हैं। घंघ के पुत्र कन्ह के चार पुत्र हुये। बड़े पुत्र अमरा जी ने अपना ठिकाना ददरेवा (चुरू) को बनाया। ददरेवा के शासक अमरा जी के दो पुत्र जेवर जी व घेवर जी हुये। जेवर जी व घेवर जी का विवाह सिरसा पट्टम के राजा की पुत्री बाछल दे व आछल दे के साथ हुआ। आछल दे के दो पुत्र अरजन व सरजन हुये।

एक बार गुरु गोरखनाथ के षिष्य कण्हप्पा ने बाछल दे से भिक्षा में बालक की झूंठन मांगी। पुत्र नहीं होने के कारण बाछल दे रोने लगी। कण्हप्पा ने बाछल दे को गुरु गोरखनाथ का आषीर्वाद प्राप्त करने की सलाह दी। 

बाछल दे की प्रार्थना पर गुरु गोरखनाथ ने उसे वरदान दिया कि तेरे एक तेजस्वी पुत्र होगा, उसका नाम ‘गुग्गल व गोरख’ के नाम पर ‘गुगो’ रखना।

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी को ददरेवा (चुरू) के शासक जेवर जी की महारानी बाछल दे के पुत्र-रत्न पैदा हुआ, जिसका नाम गुगो चौहान रखा गया और यही गुगो चौहान आमजन की भाषा में राणा गोगाजी चौहान एवं गोगा बापा कहलाने लगा। बाछल दे गुरु गोरखनाथ का आषीर्वाद प्राप्त कर अपनी मनौती पूर्ण करने हेतु बालक गोगाजी को प्रसिद्ध तीर्थ सोमनाथ के दर्षनार्थ ले गई। तभी से सोमनाथ गोगाजी चौहान के इष्ट देव हो गये। उन्होंने सोमनाथ पट्टन से महादेव का लिंग लाकर गढ़ के मध्य में प्रतिष्ठित किया। गोगाजी के पुरोहित एवं कुलगुरु नन्दीदत्त इस षिवलिंग की पूजा अर्चना करते थे। ददरेवा पर हुये बाहरी हमले में जेवर जी युद्ध करते हुये शहीद हुए। उत्तराधिकारी के रूप में राणा गोगाजी चौहान का राज्याभिषेक हुआ। राणा गोगाजी चौहान ने गौमाता की रक्षा के लिए अरजन व सरजन से युद्ध किया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया।

गजनी के सुल्तान महमूद गजनवी के विषेष दूत सालार मसूद ने राणा गोगाजी चौहान के दरबार में उपस्थित होकर निवेदन किया, ‘‘आपकी शूरवीरता और बुजुर्गी पूजा के योग्य है। गजनी के अमीर अमीनुद्दौला महमूद ने यह तुच्छ भेंट (हीरों से भरा थाल) अपनी मित्रता के उपलक्ष्य में भेजी है। कुबूल फर्माकर ममनून कीजिए।’’ ‘‘गोगाजी ने पूछा कि अमीर क्या चाहते है ?’’ दूत ने कहा ‘‘आप मरुस्थली के महाराजा है। मरुस्थली में होकर प्रभास पट्टन (सोमनाथ) जाने की इजाजत चाहते हैं।’’ यह सुनकर घोघा बापा ने तलवार खींच ली और उन्होंने कसकर एक लात हीरों से भरे थाल में लगाई और वहां से चल दिये।

वीरव्रती राणा गोगाजी चौहान ने गजनवी के दूत को कहा कि जब तक गोगा बापा के शरीर में खून की एक बूंद बाकी है, तब तक वह तो क्या, कोई परिंदा भी भगवान सोमनाथ के पर नहीं मार सकता। राणा गोगाजी चौहान ने अपने पुत्र सज्जन व पौत्र सामंत को सोमनाथ की रक्षार्थ तैनात कर दिया और स्वयं युद्ध की तैयारी में जुट गए। घोघा बापा ने कुलगुरु नन्दीदत्त को बुलाया और कहा ‘‘गुरुदेव, अब आप हैं और मैं हूं। गढ़ गढ़वी का, अमीर मेरा और अन्तःपुर आपका।’’

हमलावर महमूद गजनवी ने गोगागढ़ को घेर लिया। राणा गोगाजी चौहान जय सोमनाथ के घोष के साथ गजनवी की सेना पर बिजली की तरह टूट पड़े। भयंकर युद्ध हुआ। राणा गोगाजी चौहान ने आक्रमण का वीरोचित उत्तर दिया और अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

गुरु गोरखनाथ के निर्देषानुसार राणा गोगाजी चौहान के कुल पुरोहित नन्दी दत्त ने गोगाजी चौहान के शव का दाह संस्कार किया। इसी स्थल पर समाधि का निर्माण कराया। यही समाधि स्थल गोगामेड़ी के नाम से जग विख्यात है।

लोकदेवता एवं ऐतिहासिक योद्धा राणा गोगाजी चौहान के करोड़ों श्रद्धालु राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेष, हरियाणा, पंजाब, पष्चिम बंगाल, असम एवं हिमाचल प्रदेष सहित अनेक राज्यों में निवास करते हैं। राजस्थान एवं निकटवर्ती राज्यों के गांवों में खेजड़ी के नीचे ‘गोगाजी के थान’ होते हैं। यह कहावत प्रचलित है-

‘‘गांव गांव गोगा नै, गांव गांव खेजड़ी।’’

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमी को हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में लोकदेवता राणा गोगाजी चौहान का विषाल मेला भरता है। यह मेला एक माह तक लगता हैं।