Meera Bai Panorama, Merta, Nagaur

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परियोजना का नाम: मीरा बाई पेनोरमा मेड़ता, नागौर

95.36 लाख रूपये की वित्तीय स्वीकृति से पेनोरमा का निर्माण पूर्ण किया जा चुका है।

पेनोरमा आमजन के दर्शनार्थ चालू है।

 

मीरा बाई के जीवन का संक्षिप्त परिचय

श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा बाई श्री कृष्ण की भक्ति करते-करते अन्ततः श्री कृष्ण की प्रतिमा में विलीन हो गयी।

राव दूदाजी ने पन्द्रहवीं शताब्दी में दूदागढ़, मेड़ता सिटी में भव्य गढ़ का कलाकृति से निर्माण कराया, जो एक लोक आकर्षक धरोहर ‘गढ़’ भवन के रूप में प्रसिद्ध है।

मीरा बाई मेड़ता के राठौड़ वंष के शासक राव रतनसिंह की पुत्री थी। मीरा का जन्म 1498 ई. में ‘कुड़की’ गांव (मेड़ता) में हुआ था। इसका लालन-पालन इनके दादा दूदाजी ने किया। इनका बाल्यकाल वैष्णव धर्म से ओत-प्रोत था। मीरा में कृष्ण के प्रति भक्ति का बीजारोपण बचपन से ही हो गया था। इनकी भक्ति भावना ‘माधुर्य’ भाव की थी। मीरा नारी संतों में ईष्वर प्राप्ति की साधना में लगे रहने वाले भक्तों में प्रमुख थी।

1516 ई. में मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ। भोजराज की आकस्मिक मृत्यु के उपरान्त मीरा का सांसारिक जीवन में लगाव कम हो गया और उसकी निष्ठा भक्ति व संत सेवा की ओर बढ़ने लगी। मीरा को जब ये ज्ञात हुआ कि उसके नटवरनागर-कृष्ण तो बहुत पहले ही वृन्दावन त्याग कर द्वारिका जा बसे हैं तो उसी समय वह उनसे मिलने द्वारिका चल दी। 

भक्ति काल में मीरा के समकक्ष अन्य कोई नारी भक्त नहीं थी। मीरा के पदों में सांसारिक बन्धनों से मुक्ति पाकर ईष्वर की भक्ति में पूर्ण समर्पण की भावना दृष्टिगत होती है। मीरा का धर्म अपने आराध्य की हृदय से भक्ति करना था।

मीरा के मुख्य ग्रंथ- ‘‘सत्यभाभा जी नू रूसणो’’, ‘‘गीत गोविन्द की टीका’’, ‘‘राग गोविन्द’’, ‘‘मीरा री गरीबी’’, ‘‘रूकमणी मंगल’’, आदि माने गये हैं। उन के भजनों में जीव, दया और अहिंसा को विषेष महत्व दिया गया है। देषकाल व वातावरण के अनुसार मीरा के पदों में भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।

आज भी ‘‘मीरादासी सम्प्रदाय’’ अनेक भक्तों द्वारा अपनाया जाता है जो भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धान्तों का पोषक है। आज भी मीरा के भजन जन-जन के कण्ठों से मुखरित होते सुनाई पड़ते हैं।

श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा बाई एवं उनकी भक्ति को प्रदर्षित करने हेतु राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2008 में 95.36 लाख रूपये से राव दूदागढ़, मेड़ता का संरक्षण कर उसमें मीरा बाई पेनोरमा का निर्माण किया गया है। इस पेनोरमा में सिलिकाॅन फाइबर से निर्मित मूर्तियां, रिलिफ पेनल, मिनिएचर, षिलालेख आदि के माध्यम से मीरा बाई के जीवन के प्रेरणादायी प्रसंगों एवं महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को आम जनता के अवलोकनार्थ प्रस्तुत किया गया है। 

राजस्थान सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग के अधीन कार्यरत राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण द्वारा मीरा बाई पेनोरमा, मेड़तासिटी का विकास एवं विस्तार का कार्य द्वितीय चरण में वर्ष 2014 से किया जा रहा है।

वर्ष 2015 में मीरा बाई पेनोरमा, मेड़तासिटी का 1,60,262 तथा वर्ष 2016 में 1,50,076 पर्यटकों ने टिकिट लेकर अवलोकन किया। वर्ष 2008 से वर्ष 2016 तक कुल 10,28,852 पर्यटकों ने राव दूदागढ़, मेड़ता स्थित इस पेनोरमा का अवलोकन किया है। राव दूदागढ़ कृष्णभक्तों के लिए एक तीर्थस्थल की भांति लोकप्रिय हो गया है।