परियोजना का नाम: पन्नाधाय पेनोरमा, कमेरी
(बजट घोषणा 2016-17 पेरा संख्या 59.0.0)
वित्तीय स्वीकृति: 313.00 लाख रूपये
भौतिक प्रगति: पेनोरमा का लोकार्पण दिनांक 04-08-2018 को माननीया मुख्यमंत्री महोदया द्वारा किया जाकर आमजन के दर्शनार्थ चालू है।
नाम:- वीरांगना पन्नाधाय।
पिता:- हरचंद जी हांकड़ा (गुर्जर)।
जन्म स्थान:- चित्तौड़गढ़ के समीप पाण्डोली गांव।
पति:- कमेरी गांव के चैहान गोत्रीय लालाजी गुर्जर के पुत्र श्री सूरजमल से पन्ना का विवाह हुआ। पन्ना का पति सूरजमल एक वीर सैनिक था और चित्तौड़ राज्य में सेवारत था।
वंषज:- पन्ना का एकमात्र पुत्र चंदन था जिसकी बाल्यावस्था में ही बलि चढ़ाकर पन्ना ने मेवाड़ राज्य के कुलदीपक उदयसिंह की रक्षा की थी।
चारित्रिक विषेषताएं:- विष्व इतिहास में पन्ना के त्याग जैसा दूसरा दृष्टांत अनुपलब्ध है। अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति के लिए पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वह एक कर्तव्यनिष्ठ साहसी महिला थी।
सामाजिक/राजनीतिक योगदान:- स्वामिभक्त और वीरांगना पन्ना ने महाराणा सांगा के छोटे पुत्र राजकुमार उदयसिंह की प्राण रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान कर मेवाड़ के राजवंष की रक्षा की और मेवाड़ को अस्थिरता से बचा लिया। पन्ना को महारानी कर्मवती की सेवा तथा उदयसिंह को अपना दूध पिलाने के लिए धाय मां के रूप में नियुक्त किया गया था। रानी कर्मवती की मृत्यु के बाद कुंवर उदयसिंह की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी पन्ना ने अपना सर्वस्व समर्पित कर निभाई थीं। पन्ना के प्रयासों से ही उदयसिंह पुनः चित्तौड़ की राजगद्दी पर आसीन हो सका।
जीवन की प्रमुख प्रेरणादायी घटनाएं:- चित्तौड़ का शासक बना बनवीर जब कुंवर उदयसिंह की हत्या करने हेतु नंगी तलवार लिये आधी रात को पन्ना के कक्ष में प्रविष्ट हुआ और पूछने लगा कि उदयसिंह कहां है, तो वीरांगना पन्ना ने अपने पुत्र चंदन की ओर इषारा कर दिया। दुष्ट बनवीर ने चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। किन्तु बहादुर पन्ना ने उफ् तक नहीं की। बनवीर के जाने पर पन्ना ने चतुराई से उदयसिंह को महल के बाहर भेजकर, अपने पुत्र चंदन का दाह संस्कार किया और स्वयं भी चुपचाप महल से निकल गई।
पन्ना ने न केवल उदयसिंह की जान बचाई अपितु उसे सुरक्षित रखने हेतु दर-दर की ठोकरें खाई। अंत में कुभलगढ़ के किलेदार आषा शाह देवपुरा ने इन्हें शरण दी। यही नहीं पन्ना ने राजनीतिक कौषल दिखाते हुए अवसर आने पर कुंभलगढ़ में ही मेवाड़ के प्रमुख सरदारों को एकत्रित करवाकर कुंवर उदयसिंह का राज्याभिषेक करवाया। उदयसिंह के चित्तौड़ विजय कर पुनः राजगद्दी पर बैठने तक पन्ना ने चैन की सांस नहीं ली।
सन् 1540 ई. में चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा उदयसिंह का आधिपत्य हो गया। महाराणा उदयसिंह ने कुंभलगढ़ से महारानी जैवंती बाई, राजकुमार प्रतापसिंह, धाय मां पन्ना को चित्तौड़ बुला लिया। पन्नाधाय ने अपना संकल्प और जीवन साधना पूर्ण होने पर ही वापस चित्तौड़गढ़ में प्रवेष किया। महान् बलिदानी पन्नाधाय ने जिस साम्राज्य की रक्षा हेतु अपने पुत्र चंदन की बलि चढ़ा दी और राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी को सुरक्षित रखने के लिए जीवन भर संघर्ष किया, उसकी वह तपस्या सफल हुई। पन्ना का समर्पण सार्थक हुआ। प्रतापसिंह जैसे विष्वविख्यात देषभक्त शूरवीर और स्वाभिमानी व्यक्ति ने जिस वंष में जन्म लेकर महाराणा के पदको सुषोभित किया, वह पन्नाधाय के अमर बलिदान से ही संम्भव हुआ।