Rana Sanga Panorama, Khanua, Bharatpur

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परियोजना का नाम: राणा सांगा पेनोरमा खानवा, भरतपुर

146.59 लाख रूपये की वित्तीय स्वीकृति से पेनोरमा का निर्माण पूर्ण किया जा चुका है।

पेनोरमा आमजन के दर्शनार्थ चालू है।

 

महाराणा सांगा (संग्रामसिंह) के जीवन का संक्षिप्त परिचय

नाम:- महाराणा सांगा (संग्रामसिंह)।

पिता:- इनके पिता का नाम महाराणा रायमल था जो कि महाराणा कुम्भा के पुत्र व मेवाड़ के राजपूत शासक थे।

माता:- इनकी माता का नाम महारानी रतन कंवर था।

जन्म:- महाराणा सांगा का जन्म वैषाख बदी नवमी विक्रम संवत् 1539 (22 अप्रेल, 1482 ई.) में हुआ था।

जन्म स्थान:- महाराणा सांगा का जन्म मालवा, राजस्थान में हुआ था। 

विवाह:- महाराणा सांगा का विवाह अजमेर के करमचंद पंवार की पुत्री करणावती के साथ हुआ था।

निर्वाण:- महाराणा सांगा का निर्वाण वि.सं. 1584 (30 जनवरी, सन् 1528 ई.) को उत्तरप्रदेष में कालपी के पास एरिच में हुआ। 

निर्वाण स्थल:- महाराणा सांगा का दाह संस्कार वीर विनोद के अनुसार बसवा स्थान बताया गया है और अमरकाव्य के अनुसार माण्डलगढ़ स्थान बताया गया है। 

वंषज:- महाराणा सांगा सिसोदिया राजपूत वंष के महाप्रतापी महाराणा कुम्भा के पौत्र थे तथा महाराणा रायमल के छोटे पुत्र थे। 

चारित्रिक विषेषताएं:- महाराणा सांगा ने 1508 से 1528 ई. के बीच शासन किया। महाराणा सांगा उन मेवाड़ी महाराणाओं में से एक था जिसका नाम मेवाड़ के ही नही, अपितु सम्पूर्ण भारत के इतिहास में गौरव के साथ लिया जाता है। इनके राज्यकाल में मेवाड़ अपने गौरव और वैभव के सर्वोच्च षिखर पर पहुंचा था। तत्कालीन भारत के समस्त राज्यों में से ऐसा कोई भी शासक नहीं था, जो महाराणा सांगा से लोहा ले सके। महाराणा सांगा मेवाड़ के राणाओं में सबसे प्रतापी शासक थे और उस समय के सबसे प्रबल क्षत्रिय राजा थे जिसकी सेवा में अनेक राजा रहते थे। महाराणा सांगा एक साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी शासक थे, जो संपूर्ण भारत पर अपना अधिकार करना चाहते थे। इनके समय में मेवाड़ की सीमा का दूर-दूर तक विस्तार हुआ। महाराणा सांगा ने अपने बाहुबल पर विषाल साम्राज्य स्थापित किया। इन्होंने कई युद्ध लड़े।  इनको युद्धों में शरीर पर 80 घाव लगे तथा इनकी एक आंख, एक हाथ व एक पैर युद्ध में खराब हो चुके थे, फिर भी इनका साहस अटूट था। महाराणा सांगा हिन्दु रक्षक, भारतीय संस्कृति के रखवाले, अद्वितीय योद्धा, कर्मठ, राजनीतिज्ञ, कुषल शासक, शरणागत रक्षक, मातृभूमि के प्रति समर्पित, शूरवीर, दूरदर्षी थे। इनका इतिहास स्वर्णिम है। जिसके कारण आज मेवाड़ के उच्चतम षिरोमणि शासकों में इन्हें जाना जाता है। महाराणा सांगा का पूरा जीवन, बचपन से लेकर मृत्युपर्यन्त युद्धों में बीता, नाम के अनुरूप ये जीवन भर संघर्षरत रहे।

जीवन की प्रमुख चमत्कारी घटनाएं:- 

1. हारे हुए सुल्तान महमूद को मांडू उपहार में दिया- मालवा के सुल्तान महमूद द्वितीय को परास्त कर उसे बंधी बनाकर चित्तौड़ लाया गया। महमूद युद्ध में घायल हो गया था, घायल सुल्तान का ईलाज कराने के बाद महाराणा सांगा ने उसे ससम्मान मालवा भिजवा दिया और मांडू उपहार स्वरूप भेंट किया। महाराणा सांगा के इस उदार व्यवहार की मुस्लिम लेखकों ने भी काफी प्रषंसा की है। 

2. महमूद खिलजी पर विजय पाने पर केसरिया चारण हरिदास को चित्तौड़ उपहार में दिया- 

‘‘मांडव गढ़ गर्जर ग्रह मुके,

रैणवां दीघ चत्रगढ़ राण।’’

3. निजाम खां को बयाना जागीर में देना- महाराणा सांगा ने बयाना को अपने अधीन कर निजाम खां को बयाना का जागीरदार नियुक्त किया। परन्तु जब बाबर ने इष्क आका के नेतृत्व में बयाना पर आक्रमण किया तो निजाम खां का भाई आलम खां बाबर से मिल गया व किला बाबर को सुपुर्द कर दिया। महाराणा सांगा ने किले को घेर लिया एवं 16 फरवरी, 1527 को मुगल सेना को परास्त कर बयाना पर पुनः अधिकार कर लिया।

4. महाराणा सांगा का खानवा में युद्ध के लिये आ डटना- महाराणा सांगा 13 मार्च, 1527 ई. को बाबर से युद्ध के लिये खानवा पहुंचे। महाराणा सांगा की सेना में रावत रतनसिंह चूण्डावत (सलूम्बर), वीर सिंह व नर्बद हाडा (बूंदी), राजा हसन खां मेवाती (अलवर), भारमल (ईडर), वीरमदेव, रतनसिंह (मेड़ता), मेदिनीराय (चंदेरी), राव गांगा (मारवाड), रावल उदयसिंह (डूंगरपुर)़, रावत जोगा (कानोड़), पृथ्वीराज (आमेर), चन्द्रभान चैहान (मैनपुरी), मानिक चन्द्र चैहान (राजौर-एटा), झाला अज्जा और सज्जा (बड़ी सादड़ी), गौकुलदास परमार (बिजौलिया), रायमल राठौड़ (जोधपुर), रावत बाघसिंह (देवलिया), कुंवर कल्याणमल   (बीकानेर), शत्रुदेव (गागारोन), मोहम्मद लोदी, राजा ब्रह्मदेव, राय दिलीप, रामदास सोनगरा आदि अपनी सेना लेकर राणा सांगा के साथ थे।