Sant Sundardas Panorama, Dausa

Sant-Kavi-Sunderdas

परियोजना का नाम : संत सुन्दरदास पेनोरमा, दौसा

(बजट घोषणा 2015-16 पेरा संख्या 53.2.0)

वित्तीय स्वीकृति: 446.72 लाख रूपये

भौतिक प्रगति : पेनोरमा का लोकार्पण दिनांक 27-09-2018 को माननीया मुख्यमंत्री महोदया द्वारा किया जाकर आमजन के दर्शनार्थ चालू है।

संत सुंदरदास जी के जीवन का संक्षिप्त परिचय

 

नाम:- संत सुन्दरदास जी।

पिता:- संत सुन्दरदास जी के पिता का नाम चोखा जी था। ये बूसर गोत्र के खण्डेलवाल जाति के वैश्य थे।

माता:- संत सुन्दरदास जी की माता का नाम श्रीमती सती था। ये आमेर के सौकिया गोत्र के खण्डेलवाल जाति के वैश्य परिवार की पुत्री थी।

जन्म दिनांक:- संत सुन्दरदास जी का जन्म चैत्र शुक्ला नवमी वि.सं. 1653 (सन् 1598 ई.) को हुआ।

जन्म स्थान:- संत सुन्दरदास जी का जन्म दौसा में हुआ। इनके जन्म से सम्बंधित कथा इस प्रकार प्रचलित है कि जब दादूजी आमेेर में अपने भक्तों के साथ थे, तो उनके एक परमशिष्य जग्गाजी अन्न और सूत मांगने शहर की ओर चल पड़े। एक छोटे मकान के सामने जाकर बोले ‘‘दे माई सूत ले माई पूत’’। उस मकान में एक युवती सूत कात रही थी। संत की वाणी सुनकर युवती ने सूत की कूकड़ी जग्गाजी को दे दी और कहा- ‘‘लो महाराज सूत’’। जग्गाजी ने उसे आषीर्वाद दिया ‘‘हो माई पूत’’। जब वे भिक्षा लेकर दादूजी महाराज के पास लौटे तो दादूजी ने समाधि अवस्था में इस घटना को जान लिया और बोले कि जग्गा तूने यह क्या कर दिया। जिस कन्या को तू पुत्र होने का आषीर्वाद देकर आ रहा है उसके भाग्य में तो पुत्र ही नहीं है। जग्गाजी ने विस्मित भाव से पूछा तो अब क्या होगा महाराज? इसका हल आप ही निकाले। दादूजी बोले अब तुझे ही उसके पुत्र के रूप में अगला जन्म लेना पड़ेगा और इसके लिये यह शरीर त्यागना होगा। जग्गाजी ने कहा कि मैं इसके लिये तैयार हूँ, पर वचन दो कि अगले जन्म में भी आपके सान्निध्य में ही रहूँ। दादूजी के वचन देने पर जग्गाजी ने देह को त्याग कर उस युवती के विवाहोपरान्त उसके गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया।

विवाह:- संत सुन्दरदास जी ने बाल्यकाल में ही गुरु दादूजी से दीक्षा ग्रहण कर गृह त्याग कर दिया एवं आजीवन अविवाहित रहे।

निर्वाण:- संत सुन्दरदास जी का निर्वाण कार्तिक शुक्ला अष्टमी वि.सं. 1745 (सन् 1688 ई.) को सांगानेर में हुआ। वहां उनके षिष्यों ने समाधी की छतरी बनवाकर उसमें संत सुंदरदास जी और उनके परमधामवासी षिष्य नारायणदासजी के चरण चिन्ह पधरा दिये।

षिष्यगण:- संत सुंदरदास जी के कई षिष्य थे। इनमें पाँच षिष्य- दयालदास, श्यामदास, दामोेदरदास, निर्मलदास और नारायणदास बड़े प्रसिद्ध माने जाते हैं। नारायणदास स्वामी जी के प्रिय षिष्य थे, पर वे स्वामीजी से पहले ही सांगानेर में वि.सं. 1738 (सन् 1681 ई.) में दिवंगत हो गये थे।

चारित्रिक विषेषताएं:- संत सुन्दरदास जी 11 वर्ष की अवस्था में अपने घर को त्याग कर रज्जबजी, जगजीवन आदि के साथ अध्ययन करने के लिये काषी चले गए। काषी में रहकर सुंदरदास जी ने वेद, वेदांग, योग व्याकरण, कोष, षटषास्त्र, पुराण आदि का गहन अध्ययन किया। काव्यषास्त्र में इनकी गहरी अभिरूचि थी। काव्य के अंगों यथा, रीति-ग्रंथ, छंद, रस, अलंकार और शास्त्रसम्मत नियमों में इन्होंने विषेष दक्षता प्राप्त की। सांख्य, योग, वेदांत के बहुत से शास्त्र, उपनिषद, गीता, शांकरभाष्य आदि का इन्होंने भली-भांति मनन कर लिया था। लगभग 18 वर्ष अध्ययन करके वे काषी से लौट आये और भ्रमण करते हुए कार्तिक शुक्ल चतुर्दषी वि.सं. 1682 (सन् 1625 ई.) को फतेहपुर नगर में आये। यहां इन्होंने बारह वर्ष तक निवास किया। इनका शास्त्रीय ज्ञान, सरस कवित्व और सौम्य व्यवहार साधुओं में चर्चा का विषय हो चुका था। इससे इनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। 

सामाजिक/साहित्यिक/आध्यात्मिक योगदान:- संत सुन्दरदास जी ने 42 ग्रंथों की रचना की, जिनमें विविध विषयों का सांगोपांग विवेचन किया है। उनकी रचनाओं में सवैया ग्रंथ अपनी सरसता के लिये प्रसिद्ध है। इसमें 34 अंग और 563 सवैये है। उनके द्वारा प्रणीत ग्रंथों को संत समुदाय में बड़ी आदर की दृष्टि से देखा जाता है। 

इनके द्वारा रचित ग्रंथों की सूची निम्नानुसार है:-

1. ज्ञान समुद्र

2. सर्वांग योग प्रदीपिका

3. पंचेन्द्रिय चरित्र

4. सुख समाधि

5. स्वप्न बोध

6. वेद विचार

7. उक्त अनूप

8. अद्भुत उपदेष

9. पंच प्रभाव

10. गुरु सम्प्रदाय

11. गुरु उत्पत्ति निषानी

12. सहमहिमा निषानी

13. बावनी

14. गुरुदया षटपदी

15. भ्रम विध्वंसक अष्टक

16. गुरुकृपा अष्टक

17. गुरु उपदेष अष्टक

18. गुरुदेव महिमा अष्टक

19. रामजी अष्टक

20. नाम अष्टक

21. आत्मा अचल अष्टक

22. पंजाबी भाषा अष्टक

23. ब्रह्म स्त्रोत अष्टक

24. पीर मुरीद अष्टक

25. अजब ख्याल अष्टक

26. ज्ञान झूलना अष्टक

27. सहजानंद

28. गृह वैराग्य बोध

29. हरि बोल चितावनी

30. तर्क चितावनी

31. विवेक चितावनी

32. पवंगम

33. अडिल्ला

34. मडिल्ला

35. बारहमासी

36. आयुर्बलभेद

37. त्रिविध अंतकरण

38. पूर्वी भाषा बरबै

39. सवैया सुंदर विलास

40. साखी

41. पदावली

42. गुढ़ार्थ रचनाएं

43. चित्रकाव्य

44. कविता लक्षण

45. ज्ञान विचार

46. देषाटन सवैया

47. बाई जी की भेंट सवैया

48. संस्कृत श्लोक।